Wednesday, July 15, 2009

दिल की कलम से

सितारे झिलमिला रहे थे
बुलबुले भी बुलबुला रहे थे
हमने देखा एक दिलकश नज़ारा
पर साथ ही बढ़ रहा था मौसम का पारा
मेरी माँ ने मुझे लताडा
पानी क्यों नहीं भरता मेरा प्यारा
पर मैं भी था आवारा
नहीं है मुझे काम करना गवारा
कैद है कहीं सितारों की रोशिनी में
एक नन्हा सा बेचारा....


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