Thursday, January 20, 2011
जैसे को तैसा
पत्तों के सामने मुखौटा पड़ा था,
जंगल के किनारे बकरा खड़ा था।
नाज़ुक से धागे में एक नगीना जड़ा था,
जंगल में कहीं खज़ाना गढ़ा था।
जिसके पीछे एक कंगला लगा था,
कंगले को एक सेठ ने ठगा था।
जब वो जेल की चारदीवारी में जगा था,
सेठ भी भागते- भागते थका था,
तब वह अकस्मात् ही रुक कर खजाने का पता बका था।
मन ही मन लगा एक खयाली झटका,
जब वह अपनी राह से भटका।
मुखौटा उठा के तुरंत पटका,
जब उसे लगा काले जादू का फटका।
वहीँ उसने draw करी एक line,
और वापिस गया लेने खट्टा नीम्बू lime।
कंगले ने देखा सही टाइम,
और पहुँच गया खजाने को बनाने अपना।
सेठ ने नहीं दिया था पहरा,
तो कंगले ने खोद डाला गड्ढा दो गज गहरा।
उठा के खजाना भर लिया अपना गट्ठर,
और गड्ढे में भर कुछ पत्थर हो गया वहां से रफूचक्कर।
सेठ आया तो देखा खज़ाना हो गया था इधर- उधर,
और देख ये मंज़र उसके अरमान हुए तितर- बितर।
बकरे से पुछा - "Where is my treasure?"
पर बकरा था बहरा नहीं था उसका कुछ कहना।
सेठ आया तो था भरने अपना बोरा ,
पर छा गया उसके नयनों के आगे कोहरा।
सेठ हो गया sad,
इसलिए कहते हैं Tit for Tat।
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seth ne akasmaat kya bola?? "oye khazaana " :O :))
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