Tuesday, November 1, 2011
पढाई की है सारी लड़ाई
समाज और प्रगति के नाम पर सड़ रहा हूँ
कितनी देर से थका हुआ है मेरा दिमाग
और सामने वाली बहिनजी अलाप रही हैं एक ही राग
दुनिया के इन दस्तूरों ने मुझे पागल बना डाला है
कभी न बीत सकने वाली सदियों ने बहुत पका डाला है
मैं क्या करूँगा इतना पढ़ के
जब जी रहे है ख़ुशी से और भी लड़के
पी रहा हु कब से ग़म के आँसूं
क्या कभी जागेगी मेरे दुःख से इंसानियत की रूह
अब मुझे वापिस जाना है पढ़ने
जिससे कुछ खास मिले बायोडाटा में भरने ॥
Monday, August 15, 2011
हैप्पी Independence डे
Thursday, March 10, 2011
facebook ऐ facebook ये तो बता,
बनते है दोस्त यहाँ पर क्या?
सब बनते है kool यहाँ,
बनाते हैं 'FRIENDS FOREVER'
But I ALWAYZ think if they ever had been together
और भी ख़ास बात है इस FB की.
हो जाते हैं सारे bro और dude
which alwayyzz frces me to act rude..
Pics करते हैं upload jst fr the sake of uploading
and करते हैं status update tht also jst fr the sake of updating...
करते हैं अपने ही mobile se apni foto click..tht too standing in front of mirror..
and कोई न कर पाए इस logic को clear..
पर इससे होते हैं दो फायदे which have actually no कायदे..
होता है mobile का show off..nd अपनी pik किचने का पूरा शौक...which actually makes me shocked!!..
ppl write on their walls.
i m sad..suffering from fever.as if evrybody in this world care..
करते हैं wait उन लोगों का..न करी कभी ज़िंदगी में जिनसे बात..
और नाही कर paayenge कभी ऐसे वार्तालाप...
have guts to talk on face nd not on Facebook...
इस fb कर दिया famous कुछ words को ..नहीं कछ लोगो को..
wassup...ahk..hiiiiiiiiiiiiiii...okzz...w8..ol9...
by the way...anwzz...its the source of my inspiration...
nd the way to shooww my stupid creation!
यह कविता हमारे ही एक श्रोता(रिषभ जैन) ने लिख कर अपनी काबिलियत पूरे भारतवर्ष के सामने ज़ाहिर की है। हम उसकी काबिलियत की सरहना एवं सम्मान करते हुए, यह कविता आप सबके सामने प्रस्तुत करते हैं।
Thursday, January 20, 2011
जैसे को तैसा
पत्तों के सामने मुखौटा पड़ा था,
जंगल के किनारे बकरा खड़ा था।
नाज़ुक से धागे में एक नगीना जड़ा था,
जंगल में कहीं खज़ाना गढ़ा था।
जिसके पीछे एक कंगला लगा था,
कंगले को एक सेठ ने ठगा था।
जब वो जेल की चारदीवारी में जगा था,
सेठ भी भागते- भागते थका था,
तब वह अकस्मात् ही रुक कर खजाने का पता बका था।
मन ही मन लगा एक खयाली झटका,
जब वह अपनी राह से भटका।
मुखौटा उठा के तुरंत पटका,
जब उसे लगा काले जादू का फटका।
वहीँ उसने draw करी एक line,
और वापिस गया लेने खट्टा नीम्बू lime।
कंगले ने देखा सही टाइम,
और पहुँच गया खजाने को बनाने अपना।
सेठ ने नहीं दिया था पहरा,
तो कंगले ने खोद डाला गड्ढा दो गज गहरा।
उठा के खजाना भर लिया अपना गट्ठर,
और गड्ढे में भर कुछ पत्थर हो गया वहां से रफूचक्कर।
सेठ आया तो देखा खज़ाना हो गया था इधर- उधर,
और देख ये मंज़र उसके अरमान हुए तितर- बितर।
बकरे से पुछा - "Where is my treasure?"
पर बकरा था बहरा नहीं था उसका कुछ कहना।
सेठ आया तो था भरने अपना बोरा ,
पर छा गया उसके नयनों के आगे कोहरा।
सेठ हो गया sad,
इसलिए कहते हैं Tit for Tat।