Thursday, November 18, 2010

हाय! कवि को गम सताए

कविताएँ हुई कम
कवि को सताए ये गम
रात दिन कलम उठाये
घूमता है कवि हरदम

कविता में लिख डालूँ किसी का पता
या कह दूं एक बिल्ले की कथा
डालूँ किसी breadpakode में जान
इसी सोच में डूबा बैठा है कवि सदा

कहाँ गए वो श्रोता
कवि ने पाया अपने अन्दर एक सिक्का खोटा
सोच सोच के परेशान है कवि
की काश उसके के अन्दर कोई मस्त विचार होता

वहीँ उसने सामने देखा एक तोता
जीभ दिखा के बैठा था खिड़की पर मोटा
चिढ़ कर कवि ने उसको देखा
और फ़ैका उसपर एक लोटा

हँस कर बोला तोता
कविता के बिना कोई कवि नहीं होता
काबिल कवि को एक प्रेरणा मिली
और उसने फिर देवनागिरी में कविता लिखी

तोता और कवि गुनगुनाने लगे
और ठण्ड में गुनगुने पानी से नहाने लगे
तोता लोटे से और कवि श्री बिन लोटे के सुर लगाने लगे ...

4 comments:

  1. Sarvapratham- Isse betuki kavita maine kabhi nahi padhi!!
    :D
    Tatpashchaat- Isse kalatmak kavita bhi maine nahi padhi!!

    Khair mai bhi likhta hun!!
    Aur apko saadar aamantrit karta hun!!

    Blog:GvSparx
    Twitter:@GvSparx

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  2. waah kavi waah !
    atayant manoranjak kriti ...!
    :)

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  3. Dhanyawaad Apurva ji..

    Gv Sparx ji- dhanyawad.. yehi kalatmak vichar ek kavi ko kaabil banate hain.
    Apko Nimatran ke liye abhar

    Da Konvict ji.. apko bhi bohot Dhanyawad..

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