मैं अब तक पढ़ रहा हूँ
समाज और प्रगति के नाम पर सड़ रहा हूँ
कितनी देर से थका हुआ है मेरा दिमाग
और सामने वाली बहिनजी अलाप रही हैं एक ही राग
दुनिया के इन दस्तूरों ने मुझे पागल बना डाला है
कभी न बीत सकने वाली सदियों ने बहुत पका डाला है
  मैं क्या करूँगा इतना पढ़ के
  जब जी रहे है ख़ुशी से और भी लड़के
  पी रहा हु कब से ग़म के आँसूं
  क्या कभी जागेगी मेरे दुःख से  इंसानियत की रूह
  अब मुझे वापिस जाना है पढ़ने
  जिससे कुछ खास मिले बायोडाटा में भरने ॥
