Tuesday, November 1, 2011

पढाई की है सारी लड़ाई

मैं अब तक पढ़ रहा हूँ
समाज और प्रगति के नाम पर सड़ रहा हूँ
कितनी देर से थका हुआ है मेरा दिमाग
और सामने वाली बहिनजी अलाप रही हैं एक ही राग
दुनिया के इन दस्तूरों ने मुझे पागल बना डाला है
कभी बीत सकने वाली सदियों ने बहुत पका डाला है

मैं क्या करूँगा इतना पढ़ के
जब जी रहे है ख़ुशी से और भी लड़के
पी रहा हु कब से ग़म के आँसूं
क्या कभी जागेगी मेरे दुःख से इंसानियत की रूह
अब मुझे वापिस जाना है पढ़ने
जिससे कुछ खास मिले बायोडाटा में भरने ॥